आखिर प्रशासन इस परिषदीय शिक्षक पर मौन क्यों?
मथुरा:- आरके पांडेय एवं रामकटोर पांडेय नाम एक ही है। फर्क सिर्फ इतना है कि मंदिर रिसीवर के नाम आरके पांडेय का प्रयोग किया जा रहा है और परिषदीय शिक्षक के नाम पर रामकटोर पांडेय का प्रयोग हो रहा है। यह अलग बात है कि रिसीवर पद को जितना समय मंदिर में दिया जा रहा है, ठीक वही समय अगर अपने शिक्षक पद की भांति प्रयोग किया जाये तो बच्चों की दशा और दिशा के साथ स्कूल व्यवस्था में सुधार देखने को मिल सकता है।
अब बात करते हैं रामकटोर पांडेय के शिक्षक पद को लेकर रामकटोर जिले के नौहझील ब्लॉक में स्थित परिषदीय विद्यालय जूनियर हाईस्कूल भैरई में तैनात है, लेकिन स्कूल जाने से क्यों कतराते हैं यह तो वही जानते हैं या प्रशासनिक अधिकारी जो उसके हाथों से दाऊजी मंदिर का प्रसाद लेकर यह पूछने की जहमत तक नही उठाते कि आप स्कूल में क्यों नहीं दिखते या क्यों नहीं जाते। अगर उनके शिक्षक पद की शिकायतों को लेकर बात की जाय तो सैकड़ों शिकायतें बीएसए और एबीएसए सहित प्रशासनिक अधिकारियों के कुडेदान में पहुंचकर दफा हो गई। क्या यह सिर्फ और सिर्फ दाऊजी मंदिर के प्रसाद का कमाल है, जो रिसीवर बनकर बैठे शिक्षक के हाथों से दिया गया।
इससे पहले यही शिक्षक हाथरस जिले के एक स्कूल में तैनात रहे वहां भी शिकायतों का पिटारा लगा, लेकिन वहां के प्रशासनिक अधिकारियों के सख्त रवैये को देखकर रामकटोर ने लखनऊ से सांठ-गांठ कर अपना स्थानांतरण मथुरा करा लिया। मथुरा जिले में उनकी जन्मभूमि शायद इसलिए सोचा कि यहां तो सब अपना हथियार काम आयेगा, तो शायद वहीं हो रहा है?
बीते वर्षों में कोई उच्च जांच पर कभी भी एबीआरसी एबीएसए या फिर बीएसए के कहने पर स्कूल में उपस्थिति दर्ज दिखाने हेतु फोटो कराने के लिए चले गए होंगे, तो इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन इसे भी नहीं झुठलाया जा सकता कि उन्होंने किसी बच्चे के सामने अपनी शिक्षा प्रदर्शन किया हो।
अब बात करते हैं शिकायतों की तो शिकायतों की रामकटोर पांडेय के खिलाफ एक लंबी फेहरिस्त है, लेकिन आज तक प्रशासनिक अधिकारियों ने शिकायत को संज्ञान में लेकर कोई सख्त कदम तक नहीं उठाया। यहीं नहीं एडी बेसिक, बीएसए, एबीएसए इसके अलावा परिषद के उच्चाधिकारियों को भी शिकायतें पहुंची। उच्चाधिकारियों ने शिकायतों को संज्ञान में लेकर जिले के शिक्षा अधिकारियों की जांच हेतु स्थानांतरण कर दीं। आखिर में शिकायतों को वही उपस्थिति वाला फोटो लगाकर फाइल को बंद कर दिया।
हकीकत से अगर मुंह न मोड़ा जाय तो स्थिति आज यह बयां करती है कि एक शिक्षक सरकारी वेतन को लेकर पूरा का पूरा समय मंदिर के रिसीवर पद को दे रहा है। सुबह हो या शाम अधिकतर समय मंदिर की छत के नीचे वह आशियाना छोड़ने का मन नहीं करता, जो उसे अधिकारियों तक पहुंच देता है।
बीते दिनों की अगर बात की जाय तो सदर थाने में भी इस शिक्षक के खिलाफ एक वकील को धमकाने पर रिपोर्ट दर्ज हुई। बावजूद इसके प्रशासनिक अधिकारियों ने कोई ध्यान नहीं दिया। आखिर कब बच्चों को शिक्षा देने पहुंचेंगे।
मंदिर के रिसीवर पद के मोह छोड़कर स्कूल के बच्चों को वह कब दिखाएंगे कि बच्चों यह भी एक शिक्षक है, जो आपको आज तक शिक्षा नहीं दे पाया, लेकिन आज से बच्चों आपको शिक्षा मिलेगी। बिना शिक्षा दिए, सरकारी वेतन को कब तक एक शिक्षक हजम करता रहेगा।।
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