सरकारी स्कूल के बच्चे नवाचार में आगे, भाषा-खेल में पीछे

सरकारी स्कूल के बच्चे नवाचार में आगे, भाषा-खेल में पीछे

  • नैस रिपोर्ट 2021 के अनुसार, एससीईआरटी, बाल विज्ञान कांग्रेस, इंस्पायर अवार्ड में रहते हैं अव्वल, अंग्रेजी व हिन्दी भाषा में पिछड़ रहे।

पटना:- राष्ट्रीय विज्ञान कांग्रेस में बीते तीन सालों में बिहार के पांच सौ से अधिक स्कूली बच्चों ने राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई। इंस्पायर अवार्ड में 70 हजार से अधिक बच्चे हर साल अपना विज्ञान आइडिया भेजते हैं। इसमें से चार से पांच हजार बच्चों के आइडिया का चयन विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय करता है।

बच्चों को दस-दस हजार रुपये की राशि दी जाती है। इसके अलावा हर साल एससीईआरटी द्वारा आयोजित विज्ञान मेला, विज्ञान ड्रामा और विज्ञान निबंध प्रतियोगिता में राज्य के सैकड़ों बच्चे शामिल होते हैं।

बच्चों के नवाचार को राष्ट्रीय स्तर पर जगह मिली एनसीईआरटी की रिपोर्ट के अनुसार, विज्ञान नवाचार में बिहार के बच्चे हर साल अव्वल रहते हैं। पिछले एक साल में ही राज्य भर में 9765 बच्चे बाल वैज्ञानिक बने। इनमें से 6543 केवल सरकारी स्कूल के बच्चे हैं। यह खबर आप बेसिक शिक्षा न्यूज़ डॉट इन पर पढ़ रहे हैं। बच्चों के नवाचार को राष्ट्रीय स्तर पर जगह मिली। हाल में बिहार के 45 बाल वैज्ञानिकों का चयन इसरो द्वारा किया गया है। इन बच्चों को इसरो 15 से 26 मई तक प्रशिक्षण देगा।

हर साल बड़ी संख्या में बाल विज्ञान कांग्रेस में बिहार के बच्चे जाते हैं। ये बच्चे राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचते हैं। इस बार बाल विज्ञान कांग्रेस में राज्य भर के 30 बच्चों ने राष्ट्रीय स्तर पर जगह बनाई। इसमें दो बच्चों का प्रोजेक्ट देश भर में अच्छा रहा।

-अरुण कुमार, निदेशक, सायंस फॉर सोसाइटी

बच्चों की भाषा कमजोर

नैस रिपोर्ट 2021 की मानें तो बिहार के बच्चों की हिन्दी और अंग्रेजी भाषा कमजोर है। नैस रिपोर्ट 2021 में कक्षा तीन, पांच और दसवीं तक के विद्यार्थी शामिल हुए थे। इसमें कक्षा तीन के 23 फीसदी, कक्षा पांच के 43 फीसदी और दसवीं के 32 फीसदी की भाषा में बेहतर है, जबकि राष्ट्रीय औसत 56 फीसदी है।

खेल में जगह नहीं बनती

राज्य भर में 69 हजार से अधिक स्कूल हैं, लेकिन शारीरिक शिक्षकों की भारी कमी है। इस कारण खेलों में काफी कम संख्या में बच्चे राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जगह बना पाते हैं। शारीरिक शिक्षक अभिषेक कुमार कहते हैं कि दस में से एक या दो बच्चों में ही खेल के प्रति रुचि रहती है।