‘आधार कार्ड आयु निर्धारण का वैध दस्तावेज नहीं’
न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 94 के तहत मृतक की आयु स्कूल छोड़ने के प्रमाण पत्र में उल्लिखित जन्म तिथि से निर्धारित की जानी चाहिए। पीठ ने कहा कि हमें लगता है कि भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण ने अपने परिपत्र संख्या 8/2023 के माध्यम से, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा 20 दिसंबर, 2018 को जारी एक कार्यालय ज्ञापन के संदर्भ में कहा है कि आधार कार्ड, हालांकि पहचान स्थापित करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन जन्म तिथि का प्रमाण नहीं है।
एमएसीटी का फैसला बरकरार रखा
उम्र निर्धारित करने की बात आने पर, शीर्ष अदालत ने अपने समक्ष दावेदार-अपीलकर्ताओं की दलील को स्वीकार कर लिया। इसके साथ ही मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (एमएसीटी) के फैसले को भी बरकरार रखा। एमएसीटी ने मृतक की उम्र की गणना उसके स्कूल छोड़ने के प्रमाण पत्र के आधार पर की थी। अदालत 2015 में हुई सड़क हादसे में मरने वाले व्यक्ति के परिजनों द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी।
हाईकोर्ट ने उम्र आंकने के लिए आधार कार्ड पर भरोसा किया था
एमएसीटी, रोहतक ने 19.35 लाख रुपये का मुआवजा दिया, जिसे हाईकोर्ट ने घटाकर 9.22 लाख कर दिया, क्योंकि पाया कि एमएसीटी ने मुआवजा निर्धारित करते समय गलत तरीके से आयु गणना की थी। हाईकोर्ट ने मृतक की आयु 47 वर्ष आंकने के लिए उसके आधार कार्ड पर भरोसा किया था।