आरक्षण के अंदर कोटे को मंजूरी, सुप्रीम कोर्ट ने कहा, राज्यों को एससी/एसटी के उप-वर्गीकरण का अधिकार
अनुसूचित जाति के बीच अधिक भेदभाव पंजाब सरकार बनाम देविंदर सिंह और अन्य के मामले में सात जज की संविधान पीठ ने यह बहुमत से पारित ऐतिहासिक फैसला दिया। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि सरकार पीड़ित लोगों को 15 आरक्षण में अधिक महत्व देने के लिए उन्हें उप-वर्गीकृत कर सकती है। अनुसूचित जाति के बीच अधिक भेदभाव है और निम्नतम स्तर पर भी वर्ग के साथ संघर्ष उनके प्रतिनिधित्व से खत्म नहीं होता।
लेकिन सौ फीसदी आरक्षण नहीं दे सकेंगे मुख्य न्यायाधीश ने स्पष्ट किया,एससी-एसटी का उप-वर्गीकरण की अनुमति देते समय, राज्य किसी भी उप-वर्ग के लिए सौ फीसदी आरक्षण का निर्धारण नहीं कर सकता। साथ ही, राज्य सरकार को समुदाय के भीतर उप-वर्ग के प्रतिनिधित्व के संबंध में आंकड़ों के आधार पर उप-वर्गीकरण को उचित साबित करना होगा।
पिछड़ी जातियों को आरक्षण का उचित लाभ मिले संविधान पीठ ने बहुमत के फैसले (छह बनाम एक) में माना कि राज्य सरकारों को अधिक वंचित जातियों के उत्थान और आरक्षण का लाभ देने के लिए अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति का उप-वर्गीकरण करने का अधिकार है। पीठ ने व्यवस्था दी कि राज्यों को उप-वर्गीकरण करने की अनुमति दी जा सकती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इन समूहों के भीतर अधिक पिछड़ी जातियों को आरक्षण का उचित लाभ मिले।
समानता के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने अपने और न्यायमूर्ति मिश्रा के लिखे गए फैसले में ऐतिहासिक साक्ष्यों का हवाला देते हुए कहा कि अनुसूचित जातियां एक समरूप वर्ग नहीं हैं। उप-वर्गीकरण अनुच्छेद 14 के तहत निहित समानता के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करता है। सुप्रीम फैसला P16
उप-वर्गीकरण का विरोध करने वाले ट्रेन के सामान्य डिब्बे में बैठे यात्री जैसे हैं। यह देखा गया है कि ट्रेन के डिब्बे में प्रवेश करने के लिए लोग काफी संघर्ष करते हैं। मगर एक बार जब वे प्रवेश कर जाते हैं तो वे बाहर के लोगों को उस डिब्बे में सवार होने से रोकने के लिए हरसंभव प्रयास करते हैं।
-डीवाई चंद्रचूड़,मुख्य न्यायाधीश
2004 का फैसला पलटा
ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र सरकार से जुड़े मामले में वर्ष 2004 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जज की पीठ ने कहा था कि एससी समुदाय सजातीय वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनका उप-वर्गीकरण नहीं हो सकता। यह समानता के अधिकार का उल्लंघन है।
क्या है मामला
पंजाब सरकार ने वाल्मीकि व मजहबी सिखों को अनुसूचित जाति आरक्षण का आधा हिस्सा देने के लिए नीति बनाई। वर्ष 2006 में मामला पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट पहुंचा। हाईकोर्ट ने इसे रद्द कर दिया। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
जस्टिस त्रिवेदी ने असहमति जताई
जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी ने असहमति वाले फैसले में कहा, राज्यों द्वारा एससी-एसटी का उप-वर्गीकरण करना अनुच्छेद 341(2) के तहत राष्ट्रपति की अधिसूचना के साथ छेड़छाड़ के समान होगा।