डिजिटल हाजरीः योगी जी एकांत में सोचे कहीं आपके खिलाफ कोई साजिश तो नहीं?
भारत की शान कहे जाने वाला उत्तर प्रदेश आजकल अशांत है। इस अशांति का कारण बेसिक शिक्षकों पर जबरन थोपी जा रही डिजिटल हाजरी आदेश है। प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी के राज में अमन व शान्ति स्थापित हो गई थी। उनके प्रबंधन की मिशाल दूसरे राज्यों को दी जाने लगी थी, अचानक क्या हुआ कि राज्य की जनता उनसे नाराज हो गई, कर्मचारी विरोधी हो गए, बेसिक शिक्षकों ने बगावत कर दी और सर्व हितेषी योगी आदित्यनाथ चुप है।
कोई माने या न माने इसके पीछे योगी विरोधी एक लाबी काम कर रही है। जो योगी जी को न्याय नहीं करने दे रही हैं। इसमें अधिकारी वर्ग भी शामिल हैं। जो उन्हें अंधेरे में रख रहा है। हमने अपने इसी कालम में लोकसभा चुनावों से पूर्व लिखा था कि पुरानी पेंशन मुद्दा कही भाजपा की लुटिया न डुबो दें। साजिश में शामिल राजनीतिज्ञों व नोकरशाही ने योगी जी को पुरानी पेंशन न देने पर आमादा रखा। परिणामस्वरूप खामियाजा भुगतना पड़ा। चुनाव बाद पूरानी पेंशन का विकल्प दिया गया है।
कहा जा सकता है कि अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत। अब साजिश के तहत ही बेसिक के शिक्षकों को चोर साबित करने के लिए डीजिटल हाजरी का भूत शिक्षकों के पीछे छोड़ दिया गया है। सोचनीय विषय यह भी है कि यह डिजिटल हाजरी प्रदेश में किसी अन्य विभाग में क्यों नहीं है? शिक्षा महानिदेशक के कार्यालय में पिछले दिनों 85 कर्मचारी अनुपस्थित पाए गए थे। क्या उन्होंने अपने कार्यालय में डिजिटल हाजरी लागू की है?
बेसिक के शिक्षक को विभाग ने कोई सुविधा नही दे रखी है। उससे शिक्षक के अलावा बालगणना, स्कूल चलो अभियान, ड्रेस वितरण, मिड डे मील, निर्माण कार्य, एसएमसी की बैठक, पीटीए की बैठक, एमटीए की बैठक, ग्राम शिक्षा समिति की बैठक, रसोइए का चयन, शिक्षा समिति के खाते का प्रबंधन, एसएमसी के खाते का प्रबंधन, दूध व फल का वितरण, शिक्षा निधि के खाते का प्रबंधन, बोर्ड परीक्षा में ड्यूटी, पोलियो कार्यक्रम में प्रतिभाग,
बीएलओ ड्यूटी में प्रतिभाग, मतदान में ड्यूटी, मतगणना में ड्यूटी, जनगणना करना, संकुल की पसाप्ताहिक और बीआरसी की मासिक बैठक में भाग लेना, विद्यालय अभिलेख तैयार करना, विद्यालय की रंगाई पुताई कराना, रेपिड सर्वे कराना, बच्चों को घरों से बुलाना, टीएलएम की व्यवस्था करना, वृक्षारोपण कराना, विद्यालय की सफाई कराना, जिला स्तरीय अधिकारियों के आदेश का पालन करना, शिक्षण कार्य करना और अब डिजिटल होना। इतने सारे काम शिक्षक पर लाद दिए गए हैं कि वह शिक्षक न होकर न जाने क्या हो गया है।
शिक्षक को चोर साबित करने वाले उसे चोर तो साबित करने पर तुले हुए हैं लेकिन वे वे भूल जाते हैं कि शिक्षक को जो भी जब भी कोई कार्य सौपा गया है उसे उसने पूरे समर्पण भाव से किया है। कोरोना काल में जब इंसान दूसरे इंसान को छूने से भी डरता था। भाई भाई के अंतिम संस्कार तक नहीं जाता था। बेटा अपने पिता की अर्थी को हाथ लगाने से बचता था, पति-पत्नी के रिश्ते बेगाने हो गए थे। ऐसे समय में उत्तर प्रदेश में पंचायती चुनाव हुए थे, उनमें शिक्षकों ने चुनावी ड्यूटी निभाई थी और चुनावी ड्यूटी करते हुए 1621 शिक्षकों को कोरोना ने काल का ग्रास बना दिया था।
पोलियों अभियान में भारत को वर्ल्ड एवार्ड मिला है। उस पोलियों अभियान का पूरा भार इन्ही शिक्षकों के कंधे पर था। जिन्हें आज चोर व मक्कार व हरामखोर माना जा रहा है। उनकी जायज मांगे मानने की बजाए उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है। सरकार के हाथ में बहुत शक्ति है। पूरा तंत्र उनका, पुलिस उनकी, अखबार उनके, कुछ चेनल उनके, कुछ संगठन उनके, झूठ, छल, कपट, साम, दाम, दंड, भेद कुछ भी करलो।
मुख्यमंत्री योगी को खुद मंथन करने की जरूरत है कि सरकार शिक्षकों को क्या सुविधा दे रही है? उन्हें महानिदेशक की तरह आवास दिया गया है, उन्हें आने जाने के लिए वाहन दिया गया है। बीहड़ व दुरस्त गांवों में पहुंचने के लिए सड़के व साधन दिए गए हैं। उनसे शिक्षण के अतिरिक्त भार को कम किया गया है। उन्हें डीजी की तरह से एसी रूम दिए गए हैं? उन्हें इएल, सीएल व अन्य अवकाश दिए गए हैं? कभी महानिदेशक राज्य के स्कूलों में गई हैं? कभी उन्होंने स्थलीय व भौतिक निरीक्षण किया है? या किसी कंपनी के रिजेक्टेड टेबलेट को जबरन शिक्षकों को देना ही सीखा है?
योगी जी आप भली भांति जानते हैं कि गुरु का स्थान गोविंद से बड़ा होता है। यही कारण है कि मुलायम सिंह यादव ने अपने गुरु को मरते दम तक अपने साथ रखा था। और उनकी सलाह मिल का पत्थर होती थी। वीरबहादुर सिंह की सरकार ने शिक्षकों के आंदोलन को कुचलने के लिए घोड़े दुडवाये थे, लेकिन वे दोबारा सत्ता में नहीं आये थे। कल्याण सिंह ने पांचवे वेतन आयोग के लिए विरोध कर रहे शिक्षकों का 45 दिन का वेतन रोक दिया था। 46 वे दिन वार्ता के बाद रोका वेतन बहाल कर दिया था।
हम कहना चाहते हैं कि शिक्षकों के दमनचक्र का यह खेल सोची समझी साजिश के तहत किया जा रहा है। आपके पास साधन है, खुफिया तंत्र है, फिर भी आप ठाकुराई में आकर अपने विरोधियों की साजिश को सफल होने दे रहे हैं। शिक्षक तो बेचारा पहले ही काम के बोझ से मरा जा रहा है।
उसके पास अपने परिवार के लिए समय नही है, सरकारी कामों के कारण वह रिश्ते नाते नही निभा पा रहा है। वे सब उसे धमण्डी समझने लगे हैं। ऐसे में यदि आप जैसा योग्य व विद्वान मुख्यमंत्री भी उनकी वेदना, उनकी पीड़ा, उनके दर्द को नहीं समझोगा तो कौन समझेगा। वक्त का तकाजा है कि साजिश के तहत लायी गयी डिजिटल हाजरी को रद्द की जाए और आने वाले उपचुनावों को प्रभावित होने से बचाया जाय। आगे आपका विवेक है।
शिक्षक भी आर पार के लिये तैयार बैठा है। अंत में आप इस पर भी मंथन करें कि शिक्षक को चोर साबित करके क्या आपकी आपके शासन की बदनामी नही होगी? आपकों विचार करना होगा कि आपके व शिक्षक के बीच यह खाई कोन खोद रहा है? कहीं ऐसा न हो आप अकड़ में रहे और विपक्ष लोकसभा चुनाव की तरह से उपचुनाव का फायदा उठा लें।