Diwali : दीपावली पर दरिद्रता को भगाने का इंतजाम जानते हैं? दिवाली पर अनूठी परंपरा है बिहार के मिथिला में
Laxmi Pooja : दीपावली पर शुभ-लाभ और धन-वैभव की चाहत के साथ लोग लक्ष्मी-गणेश पूजा के साथ कुबेर को भी प्रसन्न करते हैं। लेकिन, धन की देवी लक्ष्मी को घर में बुलाने के साथ दरिद्रता को अपने आसपास से बाहर भगाने की परंपरा बिहार के भी कुछ खास हिस्सों में ही दिखती है।
शुभ दीपावली! दीपों से जगमग करने का त्योहार है आज। लोग 11 नवंबर को रात 12 बजे से मैसेज भेज रहे हैं। 12 नवंबर की रात तक दिवाली शुभकामना का संदेश देते रहेंगे। दीपावली पर शुभ-लाभ के लिए गणेश-लक्ष्मी की पूजा होती है। धन-वैभव के लिए लोग कुबेर को भी प्रसन्न करते हैं। लेकिन, बिहार में मिथिलांचल और उससे सटे इलाकों में दीपावली पर न केवल दीये जलाए जाते हैं, बल्कि दरिद्रता को भी जलाया जाता है।
यह विशेष परंपरा आज भी कायम है। जो लोग दूसरे शहरों में बसकर भूल गए हैं, उन्हें छोड़ दें तो यह परंपरा आज भी अपनी जमीन पर जारी है। ज्यादातर लोग इसे 'लुक्का-पाती' खेलना कहते हैं, लेकिन मूल परंपरा खेल नहीं बल्कि धर्म से जुड़ी है।
बाजार में लुक्का-पाती सजा हुआ है
चारों दिशाओं से जिस तरह मंगल को आकर्षित करने के लिए स्वास्तिक चिह्न बनाया जाता है, उसी तरह की एक आकृति सनई सन (Crotalaria juncea) की सूखी लकड़ी से बनाई जाती है। चौसड़ की तरह यह दिखता है। इस आकृति को चार दिशाओं के प्रतीक के रूप में एक बंडल बनाकर जोड़ा जाता है। इसे लुक्का-पाती कहा जाता है।
मिथिलांचल और आसपास में दीपावली के बाजार में इसकी रौनक अलग ही है। सनई सन को तैयार कर लोग बाजार में लाते हैं। यहीं इससे लुक्का-पाती बनाते हैं और हाथोंहाथ यह बिकता जाता है। दीपावली के लिए घर में बाकी पूजन सामग्री के साथ यह पहुंच चुका है।
जानिए क्या है परंपरा, कैसी है प्रक्रिया
दीपावली पर लक्ष्मी-गणेश पूजन के साथ जब दीप जलाकर घर के हर दरवाजे पर रख दिया जाता है, तब लुक्का-पाती की प्रक्रिया शुरू होती है। पंडित शशिकांत मिश्र बताते हैं- "घर के हर सदस्य एक-एक लुक्का पाती लेकर कुलदेवता घर या पूजाघर से निकलते हैं। सबसे पहले कुलदेवता या पूजा घर के कमरे के बाहर आकर दाएं हाथ में इसे रखते हुए प्रतीकात्मक रूप से कहना होता है- 'लक्ष्मी घर'।
ऐसा करते हुए इसे चौखट के अंदर की जमीन से सटाया जाता है। फिर यहां से उठाकर चौखट के बाहर जमीन पर सटाते समय कहना होता है- दरिद्दर (दरिद्र/दरिद्रता) बाहर। पूजाघर के बाद बाकी जिन कमरों में घर के सदस्य रहते हैं या पढ़ाई का कमरा आदि है- वहां यही प्रक्रिया करते हुए अंतिम में मुख्य दरवाजे पर यही प्रक्रिया की जाती है।
हर जगह तीन-तीन बार इसे करना होता है। चौसड़ आकृति वाले हिस्से से चारों दिशाओं से घर में लक्ष्मी का प्रवेश कराते हुए लोग दरिद्रता को बाहर ला चुके होते हैं तो इसे किसी खुले स्थान पर जुटाकर जला दिया जाता है। जलाए जाते समय तीन बार इस पार से उस पार कूदा भी जाता है। जलाए जाते समय आग के इस पार से उस पार कूदने को हुक्का-पाती खेलना भी कहते हैं।"