OPS vs NPS:- पुरानी पेंशन न देने की जिद के बीच राजनीतिक नुकसान से बचने की चुनौती, ‘एनपीएस’ में बदलाव की तैयारी
OPS Vs NPS:- पुरानी पेंशन को लेकर देश में दो खेमे बनते जा रहे हैं। एक तरफ केंद्र सरकार है, तो दूसरी ओर अधिकांश राजनीतिक दल और कर्मचारी संगठन हैं। केंद्र सरकार ने दो टूक कह दिया है कि दोबारा से पुरानी पेंशन लागू नहीं होगी।
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) के सदस्य संजीव सान्याल ने भी कहा है कि पुरानी पेंशन योजनाएं भविष्य की पीढ़ी पर ‘कर’ हैं। इसका बोझ भावी पीढ़ी पर पड़ेगा। अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ ‘एआईडीईएफ’ के महासचिव और ‘स्टाफ साइड’ की राष्ट्रीय परिषद (जेसीएम) के सदस्य सी. श्रीकुमार ने बताया, जो लोग एनपीएस जारी रखने की वकालत कर रहे हैं, वे पुरानी पेंशन योजना के लाभार्थी हैं। वे यह नहीं समझ पा रहे हैं कि एनपीएस कर्मचारियों को अपनी पूरी सेवा के दौरान हर महीने अपने वेतन का 10 फीसदी अंशदान करने के बाद 2000 रुपये से 5000 रुपये की मामूली पेंशन मिल रही है।
कर्मचारियों ने एनपीएस को बताया तथाकथित सुधार
श्रीकुमार ने कहा, एनपीएस एक श्रम-विरोधी और कॉर्पोरेट-समर्थक योजना है। इसका कर्मियों के हितों से कोई लेना-देना नहीं है। आवश्यक वस्तुओं की बेकाबू कीमतों में इतनी सी रकम से कोई व्यक्ति कैसे जिंदा रह सकता है। चार लेबर कोड, फिक्स्ड टर्म एंप्लॉयमेंट और ईपीएस-95 मिनिमम पेंशन बढ़ाने की मांग को खारिज करना, ये सभी तथाकथित सुधार हैं। बतौर श्रीकुमार ये तथाकथित सुधार, कॉरपोरेट्स की कर देनदारी को कम कर रहे हैं। यह खबर आप बेसिक शिक्षा न्यूज़ डॉट इन पर पढ़ रहे हैं। उनके व्यापार करने में आसानी हो, इसके लिए विभिन्न कानूनों को कम किया जा रहा है। एआईटीयूसी की मांग है कि सभी पेंशन योजनाओं को पूरी तरह से केंद्र सरकार द्वारा वित्त पोषित किया जाए। हाल ही में केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री डॉ. भागवत कराड, पुरानी पेंशन योजना लागू करने से साफ इंकार कर चुके हैं। पिछले दिनों वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शिमला में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि कानून के तहत, नई पेंशन योजना के अंतर्गत केंद्रीय मद में जमा पैसा राज्यों को नहीं दिया जा सकता। वह पैसा केवल उन कर्मचारियों के पास जाएगा, जो इसका योगदान कर रहे हैं।
पुरानी पेंशन के मुद्दे पर हिमाचल में नहीं बदला रिवाज
चूंकि कई राज्य पुरानी पेंशन योजना को बहाल कर चुके हैं, ऐसे में केंद्र सरकार दबाव में है। कांग्रेस पार्टी सहित कई राजनीतिक दल, पहले ही यह घोषणा कर चुके हैं कि वे सत्ता में आए तो पुरानी पेंशन को बहाल कर देंगे। भाजपा में भी इस विषय पर गहनता से विचार मंथन हुआ है। पार्टी से जुड़े विश्वस्त सूत्रों का कहना है कि हिमाचल प्रदेश के चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है। भले ही वोट प्रतिशत के हिसाब से हार जीत का अंतर एक फीसदी का रहा हो, लेकिन उसके चलते 15 सीटों का हेरफेर हो गया। हालांकि पार्टी की स्थानीय इकाई ने इस हार के लिए अपने बागियों को जिम्मेदार ठहराया, लेकिन शीर्ष नेतृत्व की समझ कुछ अलग है। यह खबर आप बेसिक शिक्षा न्यूज़ डॉट इन पर पढ़ रहे हैं। जब प्रदेश में भाजपा के खिलाफ एंटी-इनकंबेंसी फैक्टर नहीं था, तो पार्टी कैसे हार गई। हालांकि चुनाव प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर खुद पुरानी पेंशन को एक गंभीर मुद्दा बता चुके थे। उन्हें सरकारी कर्मियों की नाराजगी का अहसास था। कांग्रेस पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में ओपीएस देने की बात कही थी। पार्टी को उसका फायदा भी मिल गया। भाजपा की ओर से चुनाव में सरकारी कर्मियों को अगर पुरानी पेंशन देने का आश्वासन मिलता तो हिमाचल में रिवाज बदल सकता था।
केंद्र सरकार कर सकती है एनपीएस में बदलाव
पुरानी पेंशन की बढ़ती मांग को लेकर केंद्र सरकार इस मसले को गंभीरता से ले रही है। ‘पेंशन फंड एंड रेगुलेटरी अथॉरिटी’ (पीएफआरडीए) द्वारा अब एश्योर्ड रिटर्न देने वाली स्कीम का प्रपोजल तैयार किया जा रहा है। एनपीएस में फंड मैनेजर्स से जुड़े कुछ सख्त नियमों को अब आसान बनाया जा रहा है। पहली जनवरी से आंशिक निकासी नियम लागू हो जाएगा। इसके लिए कुछ शर्तें रखी गई हैं। जैसे एनपीएस में किसी कर्मचारी के शामिल होने की अवधि कम से कम तीन साल होनी आवश्यक है। निकासी की राशि, कर्मचारी के योगदान के 25 फीसदी से ज्यादा न हो। यह खबर आप बेसिक शिक्षा न्यूज़ डॉट इन पर पढ़ रहे हैं। बच्चों की उच्च शिक्षा, विवाह, घर की खरीद/निर्माण या गंभीर बीमारियों का इलाज, इनमें ही आंशिक निकासी की अनुमति रहेगी। जो गैर-भाजपाई सरकार वाले राज्य ओपीएस लागू कर रहे हैं, वहां एक अड़चन आ गई है। ‘एनपीएस’ वाले कर्मियों का पैसा ‘पीएफआरडीए’ के पास जमा है। पीएफआरडीए पर केंद्र सरकार का नियंत्रण होता है। केंद्रीय मद में जमा एनपीएस का पैसा राज्यों को नहीं दिया जा सकता।
‘पीएफआरडीए’ के नियमों पर बढ़ सकती है टकराहट
छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब, झारखंड और हिमाचल प्रदेश में सरकारी कर्मियों को ओपीएस लागू करने का भरोसा दिलाया गया है। झारखंड में सरकारी कर्मियों को पुरानी पेंशन और एनपीएस, में से किसी एक व्यवस्था को चुनने का विकल्प दिया गया है। छत्तीसगढ़ और राजस्थान सरकार ने पीएफआरडीए से पैसा वापस देने की मांग की है। हालांकि अभी तक इन्हें सफलता नहीं मिल सकी। छत्तीसगढ़ में सरकारी कर्मियों ने पीएफआरडीए में 17 हजार करोड़ रुपये से अधिक राशि जमा कराई है। इस राशि की वापसी के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पीएम मोदी को पत्र लिखा है। भारतीय प्रतिरक्षा मजदूर संघ के महासचिव मुकेश कुमार बताते हैं, एनपीएस का पैसा तो केंद्र सरकार के नियंत्रण में है। कई राज्य, अपने कर्मियों को ओपीएस का लाभ देने की घोषणा कर रहे हैं। अब सवाल उठता है कि कर्मियों का एनपीएस में जमा पैसा, वापस कैसे आएगा। अगर वह पैसा वापस नहीं आता है तो राज्य सरकार के खजाने पर इसका अतिरिक्त भार पड़ेगा। सरकारी खाते में उस पैसे का डिस्पोजल क्या होगा, यह भी एक अहम सवाल है। केंद्र सरकार पीएफआरडीए एक्ट में संशोधन कर इस समस्या का समाधान कर सकती है।