परिषदीय बच्चों को भोजन कराने वाली रसोइयों के बच्चे भूखे रहने को मजबूर, नहीं मिला कई महीनों से मानदेय
बस्ती:- तीन लाख बच्चों को भोजन कराने वाली रसोइयों के बच्चे भूखे रहने को मजबूर कोई उधार लेकर परिवार की गाड़ी खींच रहा तो कोई रिश्तेदारों की मदद से आखिरी बार मार्च का मानदेय मिला था। इस बात को छह महीन हो चुके हैं। तब से एक पैसा भी नहीं मिला। घर में फाकाकशी की नौबत आ गई है। कई बार बच्चों को भूखे सोना पड़ता है। यह सब देख मन खुद को कोसता है। गुस्सा भी आता है, लेकिन हम कर भी क्या सकते हैं। अपनी ड्यूटी पूरी ईमानदारी से निभाते हैं, लेकिन मेहनताना नहीं मिलता। बार-बार गुहार लगाते हैं पर कोई नहीं सुनता। आश्वासन की घुट्टी पिला दी जाती है। जिम्मेदार कहते हैं कि शासन से बजट आने पर बकाया भुगतान कर दिया जाएगा। अब इन्हें कौन बताए कि तब तक हम और हमारे बच्चे क्या करें-क्या खाकर जिंदा रहें। इतना कहते ही भानपुर की इस रसोइयां का गला रुंध गया। इसके बाद किए गए किसी भी सवाल का उसने जवाब नहीं दिया। छह माह से मानदेय नहीं मिलने से मात्र एक रसोइये की दशा दयनीय नहीं हुई है। प्राथमिक स्कूलों में पढ़ने वाले नौनिहालों की थाली में भोजन परोसने वाली अधिकांश रसोइयों की हालत लगभग ऐसी ही है। कोई दूसरों से उधार लेकर परिवार की गाड़ी खींच रहा है तो कोई रिश्तेदारों की मदद से। ऐसे में दिवाली कैसे मनेगी, यह किसी के समझ में नहीं आ रहा। जिले के सभी 14 ब्लॉक में कुल 2476 परिषदीय विद्यालय हैं। इनमें करीब तीन लाख बच्चे अध्ययनरत हैं। इन्हें मिड-डे-मील परोसने के लिए 4901 सरोइयों की तैनाती की गई है। रसोइयां बच्चों का भोजन पकाने के साथ ही साफ-सफाई में भी सहयोग करती हैं।